Saturday, 1 May 2021

मौत का परिचय

 ऐ  मौत ! क्यों अपने सत्य पर कलंक बन कर आई है तू 

ऐ मौत ! क्यों अपने ही अर्थ की विपरीत बन कर आई है तू 


माना तुझसे मिलना मेरी एक सच्चाई है 

क्या तेरे मेरे मिलन की यही परछाई है 

खिल जाएँगे कुछ फूल तो तेरा क्या बिगड़ जायेगा 

क्यों हर आँगन के फूल इन्हीं पल तोड़ने आयी है तू 


 ऐ  मौत ! क्यों अपने सत्य पर कलंक बन कर आई है तू 

क्यों अपने ही अर्थ की विपरीत बन कर आई है तू 


सृष्टि के रचयिता ने तुझे ऐसा नहीं बनाया था 

ये किसका मुखौटा और क्यों पहन आयी है तू 

तू मौत है ! तेरा आलंगन ही जीवन की परिपूर्णता थी 

क्यों अपने ही अस्तित्व को भूल आई है तू 


 ऐ  मौत ! क्यों अपने सत्य पर कलंक बन कर आई है तू 

क्यों अपने ही अर्थ की विपरीत बन कर आई है तू 


उतार फेंक यह घमंड का चेहरा जो तेरा नहीं है 

 ऐ  मौत ! याद रख ज़िन्दगी हूँ मैं !

मुझे बाँधने की तेरी औक़ात नहीं है 

यह नाकाम कोशिश व्यर्थ ही करने आई है तू 


 ऐ  मौत ! क्यों अपने सत्य पर कलंक बन कर आई है तू 

ऐ मौत ! क्यों अपने ही अर्थ की विपरीत बन कर आई है तू 


                                                                -- प्रियाशी