ये डर भी मेरा
ये स्याह भी मेरी
फिर भी बुझती साँसों को
जीवन का इंतज़ार क्यूँ है
ये शोर भी मेरा
ये घुटन भी मेरी
फिर भी बेजान पुतलों को
एहसास का इंतज़ार क्यूँ है
ये दाँव भी मेरा
ये झिझक भी मेरी
फिर भी लड़खड़ाते कदमों को
ठहराव का इंतज़ार क्यूँ है
ये अक्स भी मेरा
ये धड़कन भी मेरी
फिर भी अस्तित्व के मोहर को
मुखौटों का इंतज़ार क्यूँ है
ये विकल्प भी मेरा
ये तपन भी मेरी
फिर भी सुकून-ए-ज़िन्दगी को
प्यार का इंतज़ार क्यूँ है
-- प्रियाशी