Sunday, 20 January 2013

इंतज़ार

ये डर भी मेरा
ये स्याह भी मेरी
फिर भी बुझती साँसों को  
जीवन का इंतज़ार क्यूँ है 

ये शोर भी मेरा 
ये घुटन भी मेरी 
फिर भी बेजान पुतलों को 
एहसास का इंतज़ार क्यूँ है 

ये दाँव भी मेरा 
ये झिझक भी मेरी
फिर भी लड़खड़ाते कदमों को 
ठहराव का इंतज़ार क्यूँ है 

ये अक्स भी मेरा 
ये धड़कन भी मेरी 
फिर भी अस्तित्व के मोहर को 
मुखौटों का इंतज़ार क्यूँ है 

ये विकल्प भी मेरा 
ये तपन भी मेरी 
फिर भी सुकून-ए-ज़िन्दगी को 
प्यार का इंतज़ार क्यूँ है

                                           -- प्रियाशी

5 comments:

  1. too good.. keep it up :)

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  2. Welcome to my post Ananya.....thank you for reading....:)

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  3. Lovely interesting one Well done :))

    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….दिन में फैली ख़ामोशी

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  4. Welcome to my page Sanjay .... Thank you for reading..... :)

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