Monday, 23 June 2014

परिचय

लोग कहते है
मैं हँसती बहुत हूँ
लोग जलते भी है
की मैं खुश बहुत हूँ
एक दिन राही ने
आश्चर्य पूछ ही लिया
तुम पागल तो नहीं हो?

प्रश्न उसका नादान था
सत्य से अनजान था
बोला मैं रोकर थकता नहीं
और तुम हँसकर थकती नहीं
कहाँ है वो दुनिया
जहाँ से तुम आती हो
खुश भी रह सकता हूँ मैं
ये कैसा स्वप्न दिखाती हो?

वो बोला सौ दुखड़े रोये मैंने
अपनों के सामने, खुदा के सामने
कुछ ने सुना, कुछ ने किनारा कर लिया
गम का बोझ कभी कम न हुआ
जख्मी दिल अब एहसास से डरता है
चोटिल मन अब विश्वास से डरता है
तुम कहतीं आस अब भी है जीवन में
ये कैसा ढांढस बंधाती हो?

मैंने पूछा - परिचय क्या है तुम्हारा?
उसने अपना पता बता दिया था
मैंने प्रश्न को दोहराया
इस बार अंतर समझ में आई
मैंने अपनी आप बीती सुनाई
वो बोला तुम तो इसी दुनिया की हो
और तुम भी मेरे ही जैसी हो
किन्तु अपना परिचय जानती हो

उसने अब एक सपने का जिक्र किया था
शायद उसे अपना परिचय मिल गया था
ग़मों के साथ मुस्कुराना सीखा दिया था
गुज़रते गुज़रते उसने भी जीना सीख लिया था
अब एक और पागल मेरे
कारवां में शामिल हो गया था
                                          -- प्रियाशी 

4 comments:

  1. I have successfully proved that I am really bad in Hindi Priayshi :D.. I liked the first stanza, like the portrayal of happiness in it.. Apologies that my skills stop me there, wish I could be a little more proficient in hindi :)

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  2. Thank you Vinay for stopping by even knowing Hindi is not your forte.... :). I really appreciate your efforts and happy you like the post…. :)

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  3. Arey Waah, Priyashi :)
    Beautiful. great to find someone who's like us- good company that's made for us. However, like us, the same person is "pagal" or mad for the world! :)

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  4. Welcome to my blog post Anita.....and thank you for your lovely words...:)

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