ना जाने क्यूँ इन लम्हों को
आज नाम देने को जी चाहता है
नासमझ क्यूँ दिल मेरा
आज ख्वाबों में ही जीना चाहता है
मेरे रूठ जाने भर से जो हो नमी
उस मीठे तकरार को जी चाहता है
मेरे आ जाने भर से जो हो ख़ुशी
उस लम्बे इंतज़ार को जी चाहता है
हर उड़ान की पहुँच मुमकिन हो
उस आवारेपन को जी चाहता है
जज्बातों की मासूमियत जिन्दा हो
उस अपनेपन को जी चाहता है
जहाँ अनजान ना हों रिश्तें
उस पहचान को जी चाहता है
जहाँ अरमानों की ना हो किश्तें
उस मुकाम को जी चाहता है
-- प्रियाशी