Thursday 11 October 2012

एक फ़िक्र



एक एहसास एक सूनापन 
एक दिलासा एक अपनापन
दिल टटोला तो महसूस हुआ
ये थी उनकी फ़िक्र 

ख्वाबों की गलियारों में 
अपने आशियाने में 
हर एक ख्वाहिश को 
उम्मीदों से संजोने की है फ़िक्र 

जीवन का रचा हुआ ये खेल 
दो अजनबियों का ये कैसा मेल 
रिश्तों के ऐसे हर डोर को 
प्यार से बाँधने की है फ़िक्र 

सपने टूटे भी तो हारूंगी नहीं  
हौसला छुटे भी तो गिरूंगी नहीं 
विपरीत परिश्थितियों को भी 
जीवन से फिर जोड़ने की है फ़िक्र 

                                                --- प्रियाशी 

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