Saturday, 20 October 2012

जी चाहता है


ना जाने क्यूँ इन लम्हों को  
आज नाम देने को जी चाहता है
नासमझ क्यूँ दिल मेरा
आज ख्वाबों में ही जीना चाहता है 
  
मेरे रूठ जाने भर से जो हो नमी  
उस मीठे तकरार को जी चाहता है 
मेरे आ जाने भर से जो हो ख़ुशी
उस लम्बे इंतज़ार को जी चाहता है

हर उड़ान की पहुँच मुमकिन हो
उस आवारेपन को जी चाहता है  
जज्बातों की मासूमियत जिन्दा हो
उस अपनेपन को जी चाहता है

जहाँ अनजान ना हों रिश्तें 
उस पहचान को जी चाहता है 
जहाँ अरमानों की ना हो किश्तें 
उस मुकाम को जी चाहता है 


                                   -- प्रियाशी 



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