Saturday, 29 December 2012

कहती है बेटी !

माँ ! ओ माँ उठो ना
आज बात नहीं करोगी मुझसे 
तेरे अंदर से बोल रही हूँ  - मैं "तेरी रानी बेटी "
तू रोज़ मुझे दुनिया से परिचय कराती है 

आज भी कुछ बताओ ना 
तेरी बात सुनके बहुत अच्छा लगता है
माँ ! मैंने तो अभी से सपने बुन लिए है 
तेरा नाम हमेशा रोशन करुँगी,
तेरी परछाई हूँ ना !

माँ ! ओ माँ तुम चुप क्यूँ हो 
आज तुम इतनी उदास क्यूँ हो 
मेरी बात तो सुन रही हो ना  - मैं "तेरी लाडली बेटी "
तूमने तो मेरा नाम भी सोच लिया था 

आज भी मुझे पुकारो ना 
मुझे तेरे साथ होने का यकीन होता है
माँ ! तेरे' गर्भ में तो महफूज़ हूँ 
क्या बाहर भी ऐसी ही रहूँगी 
मैं लड़की हूँ ना !

माँ ! हाँ बोलो मैं सुन रही हूँ
अरे ! तुम तो रो रही हो,
तेरे दर्द को महसूस कर सकती हूँ - मैं "तेरी बहादुर बेटी"
मुझसे तो सच बोल सकती हो तुम 

आज ये क्या कह रही हो माँ 
ये मैं हूँ, तेरी गुडिया, तेरा सहारा 
तुमने ही तो मुझसे कहा था 
मेरे सपनो को पूरा करोगी 
अब हिम्मत तो मत हारो ना !

माँ ! मैं तेरी आँखों से देख रही हूँ 
तुम इस दुनिया से दुखी हो ना 
मेरे लिए असुरक्षित समाज से तड़प रही हो 
लेकिन मेरा अस्तित्व गलत तो नहीं

माँ ! मुझे जीवन दो 
मुझे नाम से पुकार लो 
कहती है बेटी - मुझे अपना लो  
मैं लड़की हूँ ना 

                                         -- प्रियाशी

3 comments:

  1. बहुत ही अच्छी कविता है!

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  2. बहुत अच्छा लिखती हो बहुत खुशी हुआ पढ़ कर
    खुश रहो

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